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ग़ज़ल
सू लिख लिख कर परेशाँ हो क़लम लट आप कहते हैं
मुक़ाबिल ऊस के होसे न लिखेंगे गर दो लक मिसरा
क़ुली क़ुतुब शाह
ग़ज़ल
न था कुछ तो ख़ुदा था कुछ न होता तो ख़ुदा होता
डुबोया मुझ को होने ने न होता मैं तो क्या होता
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
आमिर अमीर
ग़ज़ल
होश वालों को ख़बर क्या बे-ख़ुदी क्या चीज़ है
इश्क़ कीजे फिर समझिए ज़िंदगी क्या चीज़ है