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ग़ज़ल
उफ़ ये ज़मीं की गर्दिशें आह ये ग़म की ठोकरें
ये भी तो बख़्त-ए-ख़ुफ़्ता के शाने हिला के रह गईं
फ़िराक़ गोरखपुरी
ग़ज़ल
उफ़ ये सन्नाटा कि आहट तक न हो जिस में मुख़िल
ज़िंदगी में इस क़दर हम ने सुकूँ पाया न था
क़तील शिफ़ाई
ग़ज़ल
सीना-ए-सोज़ाँ में 'साक़िब' घुट रहा है वो धुआँ
उफ़ करूँ तो आग दुनिया की हवा देने लगे
साक़िब लखनवी
ग़ज़ल
शकील बदायूनी
ग़ज़ल
फ़िराक़ गोरखपुरी
ग़ज़ल
दिल-ए-नाशाद रोता है ज़बाँ उफ़ कर नहीं सकती
कोई सुनता नहीं यूँ बे-नवा फ़रियाद करते हैं
चकबस्त बृज नारायण
ग़ज़ल
उफ़-रे बाद-ए-जोश-ए-जवानी आँख न उन की उठती थी
मस्ताना हर एक अदा थी हर इश्वा मस्ताना था
बेदम शाह वारसी
ग़ज़ल
उफ़ ये सन्नाटा ये तारीकी ये तन्हाई का ख़ौफ़
तेरे बिन जीते ही जी है मर चुका कमरे में वो