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ग़ज़ल
रग-ए-ताक मुंतज़िर है तिरी बारिश-ए-करम की
कि अजम के मय-कदों में न रही मय-ए-मुग़ाना
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
न उट्ठा फिर कोई 'रूमी' अजम के लाला-ज़ारों से
वही आब-ओ-गिल-ए-ईराँ वही तबरेज़ है साक़ी
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
मैं हूँ एक शाइर-ए-बे-नवा मुझे कौन चाहे मिरे सिवा
मैं अमीर-ए-शाम-ओ-अजम नहीं मैं कबीर-ए-कूफ़ा-ओ-रै नहीं
नासिर काज़मी
ग़ज़ल
ये है तारीख़ का दरबार कुछ दरवेश बैठे हैं
खड़े हैं क़ैसर ओ फ़ग़्फ़ूर ओ दारा-ए-अजम पीछे
जमील मज़हरी
ग़ज़ल
ये 'जमाल' मय-कदा है नहीं याँ कोई तकल्लुफ़
ओ अरब अजम के झगड़े न हसब नसब न ज़ातें