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ग़ज़ल
अमीर ख़ुसरो
ग़ज़ल
तेरे बिन रात के हाथों पे ये तारों के अयाग़
ख़ूब-सूरत हैं मगर ज़हर के प्यालों की तरह
जाँ निसार अख़्तर
ग़ज़ल
थीं बनात-उन-नाश-ए-गर्दुं दिन को पर्दे में निहाँ
शब को उन के जी में क्या आई कि उर्यां हो गईं
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
दीन से दूर, न मज़हब से अलग बैठा हूँ
तेरी दहलीज़ पे हूँ, सब से अलग बैठा हूँ
पीर नसीरुद्दीन शाह नसीर
ग़ज़ल
तुम्हारा ग़म भी किसी तिफ़्ल-ए-शीर-ख़ार सा है
कि ऊँघ जाता हूँ मैं ख़ुद उसे सुलाते हुए
रहमान फ़ारिस
ग़ज़ल
मिरे मौसमों के भी तौर थे मिरे बर्ग-ओ-बार ही और थे
मगर अब रविश है अलग कोई मगर अब हवा कोई और है
नसीर तुराबी
ग़ज़ल
साफ़ अलग हम को जुनून-ए-आशिक़ी ने कर दिया
ख़ुद को तेरे दर्द का पर्दा समझ बैठे थे हम