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ग़ज़ल
इन ध्यान-मग्न सब्ज़ दरख़्तों के इर्द-गिर्द
ये कैसी रौशनी का निशाँ हो रहा है देख
महेंद्र कुमार सानी
ग़ज़ल
क़मर जलालवी
ग़ज़ल
क्या हुआ वाइज़ करे है शोर जूँ तब्ल-ए-तही
वो सर-ए-बे-मग़ज़ गोया कांसा-ए-तम्बूर है
शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम
ग़ज़ल
न होंगे सोज़-ए-मोहब्बत के दिल-जले ठंडे
भरी है आतिश-ए-ग़म मग़्ज़-ए-उस्तुख़्वाँ की तरह
दाग़ देहलवी
ग़ज़ल
हाल में अपने मगन हो फ़िक्र-ए-आइंदा न हो
ये उसी इंसान से मुमकिन है जो ज़िंदा न हो
सुरूर बाराबंकवी
ग़ज़ल
इरफ़ान सत्तार
ग़ज़ल
मर्ग-ए-मोहब्बत और इस के अस्बाब पे आख़िर रोए कौन
वो भी ख़ुद में मस्त मगन है मैं भी अपने हाल में ख़ुश
अज़ीज़ नबील
ग़ज़ल
शुऊ'र-ए-अस्र ढूँढता रहा है मुझ को और मैं
मगन हूँ अहद-ए-रफ़्तगाँ की अज़्मतों के दरमियाँ