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ग़ज़ल
न पल बिछ्ड़ें पिया हम से न हम बिछड़े पियारे से
उन्हीं से नेह लागी है हमन को बे-क़रारी क्या
कबीर
ग़ज़ल
मुझे चाक-ए-जेब-ओ-दामन से नहीं मुनासिबत कुछ
ये जुनूँ ही को मुबारक रह-ओ-रस्म-ए-आमियाना