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ग़ज़ल
इक हक़ीक़त सही फ़िरदौस में हूरों का वजूद
हुस्न-ए-इंसाँ से निमट लूँ तो वहाँ तक देखूँ
अहमद नदीम क़ासमी
ग़ज़ल
अज़िय्यतों में भी बख़्शी मुझे वो ने'मत-ए-सब्र
कि मेरे दिल में गिरह है न मेरे माथे पे बल
अहमद फ़राज़
ग़ज़ल
ख़ुदा ने मुझ को बिन-माँगे ये नेमत दी है 'मंज़र'
तरसते हैं बहुत से लोग ममता देखने को