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ग़ज़ल
मुझे आह-ओ-फ़ुग़ान-ए-नीम-शब का फिर पयाम आया
थम ऐ रह-रौ कि शायद फिर कोई मुश्किल मक़ाम आया
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
ज़मीं पे आह-ओ-बुका और ख़ून-ए-नाहक़ भी
ज़बान-ए-ख़ल्क़ ये पूछे है क्या ख़ुदा नहीं है
किश्वर नाहीद
ग़ज़ल
तेरे दीवाने हो जाते कहीं सहराओं में खो जाते
दीवार-ओ-दर में क़ैद हमें अगर अहल-ओ-अयाल नहीं करते
वाली आसी
ग़ज़ल
ये हँसता हुआ शोर संजीदगी के लिए इम्तिहाँ है
सो मोहतात रहना कि तहज़ीब-ए-आह-ओ-फ़ुग़ाँ खो न जाए
अज़्म बहज़ाद
ग़ज़ल
कब तलक दीदा-ए-नम दीदा-ए-नम दीदा-ए-नम
कब तलक आह-ओ-फ़ुग़ाँ आह-ओ-फ़ुग़ाँ सो जाओ