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ग़ज़ल
उबैदुल्लाह अलीम
ग़ज़ल
मैं ये किस के नाम लिक्खूँ जो अलम गुज़र रहे हैं
मिरे शहर जल रहे हैं मिरे लोग मर रहे हैं
उबैदुल्लाह अलीम
ग़ज़ल
तेरे प्यार में रुस्वा हो कर जाएँ कहाँ दीवाने लोग
जाने क्या क्या पूछ रहे हैं ये जाने-पहचाने लोग
उबैदुल्लाह अलीम
ग़ज़ल
तू अपनी आवाज़ में गुम है मैं अपनी आवाज़ में चुप
दोनों बीच खड़ी है दुनिया आईना-ए-अल्फ़ाज़ में चुप
उबैदुल्लाह अलीम
ग़ज़ल
वहशतें कैसी हैं ख़्वाबों से उलझता क्या है
एक दुनिया है अकेली तू ही तन्हा क्या है