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ग़ज़ल
इस चमन में रेशा-दारी जिस ने सर खेंचा 'असद'
तर ज़बान-ए-लुत्फ़-ए-आम-ए-साक़ी-ए-कौसर हुआ
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
आग़ाज़-ए-सब्ज़ा से है जो रुख़्सार पर ग़ुबार
अगले बरस इसे ख़त-ए-गुलज़ार देखना
परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़
ग़ज़ल
रुख़ का है अक्स दिल में तो रुख़ में है दिल का अक्स
है आइने के सामने हर बार आइना
परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़
ग़ज़ल
तू भी गुल के आईने पर खींच दे तस्वीर-ए-हुस्न
मैं भी बुलबुल को सुनाऊँ बाग़ में तक़रीर-ए-इश्क़
परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़
ग़ज़ल
जब हो दम-ए-आख़िर तो बचा लेने की ताक़त
फिर ख़ाक-ए-शिफ़ा में न कहीं आब-ए-बक़ा में
परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़
ग़ज़ल
है अपने क़त्ल की दिल-ए-मुज़्तर को इत्तिलाअ
गर्दन को इत्तिलाअ न ख़ंजर को इत्तिलाअ
परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़
ग़ज़ल
बहुत ही साफ़-ओ-शफ़्फ़ाफ़ आ गया तक़दीर से काग़ज़
तुम्हारे वास्ते लाया हूँ मैं कश्मीर से काग़ज़
परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़
ग़ज़ल
न आया कर के व'अदा वस्ल का इक़रार था क्या था
किसी के बस में था मजबूर था लाचार था क्या था