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ग़ज़ल
दिल फुक रहा है गरचे हम आग़ोश है वो गुल
पहलू में मेरे ख़ुल्द है दोज़ख़ बग़ल में है
असद अली ख़ान क़लक़
ग़ज़ल
दिल है बस अब अलम से शक़ यास से रंग रुख़ है फ़क़
देखेंगे हम कब ऐ 'क़लक़' आँखों से मर्क़द-ए-अली
असद अली ख़ान क़लक़
ग़ज़ल
फेक दो घर से हया बाज़ार में बिकते रहो
बाप को घर के किसी कोने में जाँ दे दी गई