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ग़ज़ल
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
बिन चाहे बिन बोले पल में टूट फूट कर फिर बन जाए
बालक सोच रहा है अब भी ऐसा कोई खिलौना होगा
मीराजी
ग़ज़ल
टूट गए सय्याल नगीने फूट बहे रुख़्सारों पर
देखो मेरा साथ न देना बात है ये रुस्वाई की
क़तील शिफ़ाई
ग़ज़ल
डूबने वाले की मय्यत पर लाखों रोने वाले हैं
फूट फूट कर जो रोते हैं वही डुबोने वाले हैं
फ़ना निज़ामी कानपुरी
ग़ज़ल
ये नाज़ुक लब हैं या आपस में दो लिपटी हुई कलियाँ
ज़रा इन को अलग कर दो तरन्नुम फूट जाएँगे
राजेन्द्र कृष्ण
ग़ज़ल
सुन कर लगी ये कहने वो अय्यार-ए-नाज़नीं
''क्या बोलें चल हमारा तो दिल तुझ से फट गया''