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ग़ज़ल
बसर हो मय-कदे में पंज-शम्बा बैठ कर जिस का
जो मय-नोशी में कर दे सुब्ह आदीना उसी का है
शाद अज़ीमाबादी
ग़ज़ल
तू जहाँ के बहर-ए-अमीक़ में सर पर हुआ न बुलंद कर
कि ये पंज-रोज़ा जो बूद है कसो मौज-ए-पुर का हबाब है
मीर तक़ी मीर
ग़ज़ल
तिरी सवारी में कब पंज शाख़े हैं ऐ सर्व
जिलौ में सेहन-ए-गुलिस्ताँ से है चिनार आया
इमाम बख़्श नासिख़
ग़ज़ल
मैं शौक़-ए-वस्ल में क्या रेल पर शिताब आया
कि सुब्ह हिन्द में था शाम पंज-आब आया
मर्दान अली खां राना
ग़ज़ल
उस दूध का ख़ुदा करे कासा हमें नसीब
जन्नत में पंज-तन की जो बहती है जू-ए-शीर