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ग़ज़ल
ख़ैरात की जन्नत ठुकरा दे है शान यही ख़ुद्दारी की
जन्नत से निकाला था जिस को तू उस आदम का पोता है
हफ़ीज़ जालंधरी
ग़ज़ल
आँख पे पट्टी बाँध के मुझ को तन्हा छोड़ दिया है
ये किस ने सहरा में ला कर सहरा छोड़ दिया है
अब्बास ताबिश
ग़ज़ल
ख़ुद-ग़र्ज़ियों के साए में पाती है परवरिश
उल्फ़त को जिस का सिद्क़ ओ सफ़ा नाम रख दिया
गोपाल मित्तल
ग़ज़ल
खिंची कंघी गुँधी चोटी जमी पट्टी लगा काजल
कमाँ-अबरू नज़र जादू निगह हर इक दुलारी है