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ग़ज़ल
ये सारी आमद-ओ-रफ़्त एक जैसी तो नहीं 'शाहीन'
कि दुनिया में सफ़र कम कम है और हिजरत ज़ियादा है
शाहीन अब्बास
ग़ज़ल
ये रस्म-ए-आमद-ओ-रफ़्त-ए-दयार-ए-इश्क़ ताज़ा है
हँसी वो जाए मेरी और रोना यूँ चला आवे
मीर तक़ी मीर
ग़ज़ल
राहत-ए-अंजाम-ए-ग़म और राहत-ए-दुनिया मालूम
लिख दिया दिल के मुक़द्दर में परेशाँ होना
फ़ानी बदायुनी
ग़ज़ल
रंज से इश्क़ के है राहत-ए-दुनिया बद-तर
ज़ख़्म-ए-ख़ंदाँ हूँ अगर मैं गुल-ए-ख़ंदाँ माँगूँ
हैदर अली आतिश
ग़ज़ल
इसी गोशा-ए-याद में बैठा हूँ कई बरसों से
किसी रफ़्त-गुज़श्त का पास करो कभी आओ ना