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ग़ज़ल
चुरा के ख़्वाब वो आँखों को रेहन रखता है
और उस के सर कोई इल्ज़ाम भी नहीं आता
ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर
ग़ज़ल
हर लम्हा घमसान का रन है कौन अपने औसान में है
कौन है ये? अच्छा तो मैं हूँ लाश तो हाँ इक यार गिरी
जौन एलिया
ग़ज़ल
है कुशाद-ए-ख़ातिर-ए-वा-बस्ता दर रहन-ए-सुख़न
था तिलिस्म-ए-क़ुफ़्ल-ए-अबजद ख़ाना-ए-मकतब मुझे
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
सरापा रेहन-ए-इश्क़-ओ-ना-गुज़ीर-ए-उल्फ़त-ए-हस्ती
'इबादत बर्क़ की करता हूँ और अफ़्सोस हासिल का
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
पूछ मत रुस्वाई-ए-अंदाज़-ए-इस्तिग़ना-ए-हुस्न
दस्त मरहून-ए-हिना रुख़्सार रहन-ए-ग़ाज़ा था
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
ज़ुल्म-पेशा ज़ु़ल्म-शेवा ज़ु़ल्म-रान ओ ज़ुल्म-दोस्त
दुश्मन-ए-दिल दुश्मन-ए-जाँ दुश्मन-ए-तन आप हैं
बहादुर शाह ज़फ़र
ग़ज़ल
रन-खन पड़ेंगे जब कहीं दिखलाएगा वो शक्ल
बे-किश्त-ए-ख़ूँ हुई ये मुहिम हो के सर नहीं