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ग़ज़ल
न लेते काम गर सिब्त-ए-नबी सब्र-ओ-तहम्मुल से
लईनों का निगाह-ए-ख़श्म से आसाँ था मर जाना
महाराजा सर किशन परसाद शाद
ग़ज़ल
वो जिन की दस्त-ख़तें महज़र-ए-सितम पे हैं सब्त
हर उस अदीब हर उस बे-अदब से वाक़िफ़ हैं
इफ़्तिख़ार आरिफ़
ग़ज़ल
अभी सीनों में लहराते हैं मेरी याद के परचम
अभी तक सब्त हैं मोहरें दिलों पर बादशाहत की