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ग़ज़ल
गुज़ारे तुम ने कैसे रोज़-ओ-शब हम से ख़फ़ा हो कर
न हम को रास आई ज़िंदगी तुम से जुदा हो कर
राज कुमार सूरी नदीम
ग़ज़ल
'नदीम' उन की ज़बाँ पर फिर हमारा नाम है शायद
हमारी फ़िक्र में फिर गर्दिश-ए-अय्याम है शायद
राज कुमार सूरी नदीम
ग़ज़ल
फिर उन की निगाहों के पयाम आए हुए हैं
फिर क़ल्ब-ओ-नज़र बख़्त पे इतराए हुए हैं
राज कुमार सूरी नदीम
ग़ज़ल
जब फ़राज़-ए-बाम पर वो जल्वा-गर होता नहीं
कोई आलम हो नज़र में मो'तबर होता नहीं
राज कुमार सूरी नदीम
ग़ज़ल
बुलबुलें है बे-सुरी ख़बरें ये किस ने हैं गढ़ी
किस ने कव्वे को दिया है मर्तबा फ़नकार का
सदा अम्बालवी
ग़ज़ल
सारी दुनिया की नज़र में है मिरा अहद-ए-वफ़ा
इक तिरे कहने से क्या मैं बेवफ़ा हो जाऊँगा