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ग़ज़ल
है अदम में ग़ुंचा महव-ए-इबरत-ए-अंजाम-ए-गुल
यक-जहाँ ज़ानू तअम्मुल दर-क़फ़ा-ए-ख़ंदा है
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
तम मेरे ख़यालों में खो कर बर्बाद न करना जीवन को
जब कोई सहेली बात तुम्हें समझाए कभी तो मत रोना
हसरत जयपुरी
ग़ज़ल
करने को हैं दूर आज तो तौ ये रोग ही जी से
अब रक्खेंगे हम प्यार न तुम से न किसी से