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ग़ज़ल
दिखाऊँगा तमाशा दी अगर फ़ुर्सत ज़माने ने
मिरा हर दाग़-ए-दिल इक तुख़्म है सर्व-ए-चराग़ाँ का
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
दहक़ाँ की तरह दाना ज़मीन में न बो अबस
बौना वही जो तुख़्म-ए-अमल दिल में बोइए
शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम
ग़ज़ल
असर सोज़-ए-मोहब्बत का क़यामत बे-मुहाबा है
कि रग से सँग में तुख़्म-ए-शरर का रेशा पैदा है
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
पनावे बे-गुदाज़-ए-मोम रब्त-ए-पैकर-आराई
निकाले क्या निहाल-ए-शम्अ बे-तुख़्म-ए-शरार आतिश
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
नतीजा क्यूँकर अच्छा हो न हो जब तक अमल अच्छा
नहीं बोया है तुख़्म अच्छा तो कब पाओगे फल अच्छा
इस्माइल मेरठी
ग़ज़ल
'वज़ीर' तुख़्म-ए-मोहब्बत को दिल में बो अपने
ज़मीं वो शोर है जिस में उगे न दाना-ए-इश्क़
ख़्वाज़ा मोहम्मद वज़ीर
ग़ज़ल
वो तुख़्म-ए-सोख़्ता थे हम कि सर-सब्ज़ी न की हासिल
मिलाया ख़ाक में दाना नमत हसरत से दहक़ाँ को
मीर तक़ी मीर
ग़ज़ल
फ़िक्र लाहक़ है हमेशा मिस्ल-ए-तुख़्म-ए-ना-तवाँ
हश्र क्या होगा दरून-ए-आब-ओ-गिल जाने के बाद
इफ़्तिख़ार राग़िब
ग़ज़ल
इश्क़ को नश्व-ओ-नुमा मंज़ूर है कब वर्ना सब्ज़
तुख़्म-ए-अश्क-ए-शम्अ हो ख़ाकिस्तर-ए-परवाना में
शेख़ इब्राहीम ज़ौक़
ग़ज़ल
गुल की न तुख़्म मुर्ग़-ए-चमन कर सके तलाश
हम ख़ाम-फ़ितरतों से तिरी जुस्तुजू न हो
मोहम्मद रफ़ी सौदा
ग़ज़ल
कैसी भी हो ज़मीन 'अजब हल है तब-ए-तेज़
'माइल' जो बोएँ हम न हो तुख़्म-ए-सुख़न ख़राब