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ग़ज़ल
शेख़ी है वहाँ जुब्बा-ओ-दस्तार पे मौक़ूफ़
रिंदी को यहाँ तर्क-ए-तन-ओ-सर हुए मख़्सूस
साहिर देहल्वी
ग़ज़ल
'नदीम' इस दौर में हर गाम पर ता'न-ओ-मलामत हैं
बहुत दुश्वार है दुनिया में जीना बा-वफ़ा हो कर