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ग़ज़ल
टोक के उस से बात करूँ तो यूँ वो कहे है चितवन में
मुझ को न छेड़ो ध्यान अजी इस वक़्त मिरा है और कहीं
जुरअत क़लंदर बख़्श
ग़ज़ल
बुरा नहीं बड़ा नाज़ुक मिज़ाज है मिरा दोस्त
ज़र्रा सा टोक दिया क्या कि में ब्लाक हुआ
तस्लीम नियाज़ी
ग़ज़ल
बरून-ए-मय-कदा ही क्यों ये रोक-टोक पूछ-ताछ
तिरी तरफ़ से साक़िया अगरचे इज़्न-ए-आम है
सरशार होश्यारपुरी
ग़ज़ल
ऐ दिल अब इश्क़ की लै-गोई और चौगान में आ
बे-ख़तर ठोक के ख़म जंग के सामान में आ