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ग़ज़ल
ज़ियारत-गाह-ए-अहल-ए-अज़्म-ओ-हिम्मत है लहद मेरी
कि ख़ाक-ए-राह को मैं ने बताया राज़-ए-अलवंदी
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
हम को है मालूम सब रूदाद-ए-इल्म-ओ-फ़ल्सफ़ा
हाँ हर ईमान-ओ-यक़ीं वहम-ओ-गुमाँ बनता गया
फ़िराक़ गोरखपुरी
ग़ज़ल
शमीम करहानी
ग़ज़ल
अध-खुली तकिए पे होगी इल्म-ओ-हिकमत की किताब
वसवसों वहमों के तूफ़ानों में घर जाएँगे हम
ज़ेहरा निगाह
ग़ज़ल
ये दौर-ए-शम्स-ओ-क़मर ये फ़रोग़-ए-इल्म-ओ-हुनर
ज़मीन फिर भी तरसती है रौशनी के लिए
अबुल मुजाहिद ज़ाहिद
ग़ज़ल
जिन को अपनों से तवज्जोह नहीं मिलती 'जावेद'
हाथ ग़ैरों से मिलाते हुए मर जाते हैं
मालिकज़ादा जावेद
ग़ज़ल
कभी था नाज़ ज़माने को अपने हिन्द पे भी
पर अब उरूज वो इल्म-ओ-कमाल-ओ-फ़न में नहीं