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ग़ज़ल
किताब-ए-ज़िंदगी का हर वर्क़ कहने को सादा है
मगर जो कुछ भी लिक्खा है हुरूफ़-ए-ख़ूँ में लिक्खा है
aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
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किताब-ए-ज़िंदगी का हर वर्क़ कहने को सादा है
मगर जो कुछ भी लिक्खा है हुरूफ़-ए-ख़ूँ में लिक्खा है