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ग़ज़ल
काँटे रह-ए-हयात में हर हर क़दम पे हैं
फूलों की सेज ऐ 'ज़की' यह ज़िंदगी नहीं
अब्दुल क़य्यूम ज़की औरंगाबादी
ग़ज़ल
ये 'इश्क़ ऐसा ही चस्का है क्या बताऊँ तुम्हें
जिसे भी लगता है यह बे-हिसाब लगता है
मुख़्तार अंसारी
ग़ज़ल
हमारे रोने पे कह रहे हैं ये कैसे मोती बरस रहे हैं
हमारी मुंडिया रगड़ के बोले तुझे कसौटी पे कस रहे हैं
किशन लाल ख़न्दां देहलवी
ग़ज़ल
बे-ख़ुदी में भी हूँ मैं राज़-ए-ख़ुदी से आश्ना
ऐन-बेदारी है ये ख़्वाब-ए-गिराँ कुछ इन दिनों