aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम ".zulo"
शिकन-ए-ज़ुल्फ़-ए-अंबरीं क्यूँ हैनिगह-ए-चश्म-ए-सुरमा सा क्या है
आह को चाहिए इक उम्र असर होते तककौन जीता है तिरी ज़ुल्फ़ के सर होते तक
ये ज़ुल्फ़ अगर खुल के बिखर जाए तो अच्छाइस रात की तक़दीर सँवर जाए तो अच्छा
अल्लाह-रे फ़रेब-ए-मशिय्यत कि आज तकदुनिया के ज़ुल्म सहते रहे ख़ामुशी से हम
न वो इश्क़ में रहीं गर्मियाँ न वो हुस्न में रहीं शोख़ियाँन वो ग़ज़नवी में तड़प रही न वो ख़म है ज़ुल्फ़-ए-अयाज़ मैं
माँगे है फिर किसी को लब-ए-बाम पर हवसज़ुल्फ़-ए-सियाह रुख़ पे परेशाँ किए हुए
आँख है तुर्क ज़ुल्फ़ है सय्याददेखें दिल का शिकार कौन करे
शबान-ए-हिज्राँ दराज़ चूँ ज़ुल्फ़ ओ रोज़-ए-वसलत चूँ उम्र-ए-कोताहसखी पिया को जो मैं न देखूँ तो कैसे काटूँ अँधेरी रतियाँ
हज़रत-ए-ज़ुल्फ़-ए-ग़ालिया-अफ़्शाँनाम अपना सबा सबा कीजे
जिस दिन से ए'तिमाद में आया तिरा शबाबउस दिन से तुझ पे ज़ुल्म ही ढाता रहा हूँ मैं
चेहरे पे मिरे ज़ुल्फ़ को फैलाओ किसी दिनक्या रोज़ गरजते हो बरस जाओ किसी दिन
तू जो ऐ ज़ुल्फ़ परेशान रहा करती हैकिस के उजड़े हुए दिल में है ठिकाना तेरा
अपने सर इक बला तो लेनी थीमैं ने वो ज़ुल्फ़ अपने सर ली है
छलके हुए थे जाम परेशाँ थी ज़ुल्फ़-ए-यारकुछ ऐसे हादसात से घबरा के पी गया
ज़ुल्म सह कर जो उफ़ नहीं करतेउन के दिल भी अजीब होते हैं
जो देखते तिरी ज़ंजीर-ए-ज़ुल्फ़ का आलमअसीर होने की आज़ाद आरज़ू करते
हर आमिर तूल देना चाहता हैमुक़र्रर ज़ुल्म की मीआ'द कर के
हो रहा है जहान में अंधेरज़ुल्फ़ की फिर सिरिश्ता-दारी है
किसी ज़ुल्फ़ को सदा दो किसी आँख को पुकारोबड़ी धूप पड़ रही है कोई साएबाँ नहीं है
ज़ुल्म के दौर से इकराह-ए-दिली काफ़ी हैएक ख़ूँ-रेज़ बग़ावत हो ज़रूरी तो नहीं
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