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ग़ज़ल
इन दिनों में ज़ूर होता है हमें जोश-ए-जुनूँ
भागता है छोड़ कर मजनूँ बयाबाँ आज-कल
वज़ीर अली सबा लखनवी
ग़ज़ल
'ग़ालिब'-ए-ख़स्ता के बग़ैर कौन से काम बंद हैं
रोइए ज़ार ज़ार क्या कीजिए हाए हाए क्यूँ
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है
देखना है ज़ोर कितना बाज़ू-ए-क़ातिल में है
बिस्मिल अज़ीमाबादी
ग़ज़ल
न सवाल-ए-वस्ल न अर्ज़-ए-ग़म न हिकायतें न शिकायतें
तिरे अहद में दिल-ए-ज़ार के सभी इख़्तियार चले गए