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ग़ज़ल
ज़माना देखता हूँ क्या करेगा मुद्दई हो कर
नहीं भी हो तो बिस्मिल्लाह मेरे मुद्दआ तुम हो
सरशार सैलानी
ग़ज़ल
जो कहते हो चलें हम भी तिरे हमराह बिस्मिल्लाह
फिर इस में देर क्या और पूछना क्या वाह बिस्मिल्लाह
नज़ीर अकबराबादी
ग़ज़ल
तो बिस्मिल्लाह के गुम्बद में क्या है मोतकिफ़ ज़ाहिद
सुकून-ए-ख़ातिर-ए-मुज़्तर हवासों से अमाँ तक है
दत्तात्रिया कैफ़ी
ग़ज़ल
क़ामत-ए-मौज़ूँ नज़र आए मुझे जा-ए-अलिफ़
था शुरू-ए-आशिक़ी दिन मेरी बिस्मिल्लाह का
इमाम बख़्श नासिख़
ग़ज़ल
मिरी कश्ती अगर छूटेगी दरिया-ए-मोहब्बत में
तो सबसे पहले बिस्मिल्लह लब-ए-साहिल से निकलेगी
दाग़ देहलवी
ग़ज़ल
जो हुई सो हुई जाने दो मिलो बिस्मिल्लाह
जाम-ए-मय हाथ से लो मेरे पियो बिस्मिल्लाह
मीर मोहम्मदी बेदार
ग़ज़ल
ये दिल हाज़िर है बिस्मिल्लाह वो खोलें गिरह इस की
अगर आसान हल्ल-ए-उक़्दा-ए-मुश्किल समझते हैं
मिर्ज़ा मोहम्मद हादी अज़ीज़ लखनवी
ग़ज़ल
ताक़-ए-अबरू हैं पसंद-ए-तब्अ इक दिल-ख़्वाह के
उम्र होती है बसर गुम्बद में बिस्मिल्लाह के
हैदर अली आतिश
ग़ज़ल
दिल को चश्म-ए-यार ने जब जाम-ए-मय अपना दिया
उन से ख़ुश हो कर लिया और कह के बिस्मिल्लाह पिया
नज़ीर अकबराबादी
ग़ज़ल
दिल को अबरू-ए-सनम का शेफ़्ता करती है आँख
दर्स देता है मोअल्लिम पहले बिस्मिल्लाह का
हैदर अली आतिश
ग़ज़ल
सेहन-ए-गुलशन में चली फिर के हवा बिस्मिल्लाह
चश्म-ए-बद-दूर बहार आई है क्या बिस्मिल्लाह