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ग़ज़ल
अब न वो मैं न वो तू है न वो माज़ी है 'फ़राज़'
जैसे दो शख़्स तमन्ना के सराबों में मिलें
अहमद फ़राज़
ग़ज़ल
बीते लम्हे ध्यान में आ कर मुझ से सवाली होते हैं
तू ने किस बंजर मिट्टी में मन का अमृत डोल दिया
शकेब जलाली
ग़ज़ल
गोया फ़क़ीर मोहम्मद
ग़ज़ल
झुके हुए पेड़ों के तनों पर छाप है चंचल धारे की
हौले हौले डोल रही है घास नदी के किनारे की
ज़ेब ग़ौरी
ग़ज़ल
फिर तैर के मेरे अश्कों में गुल-पोश ज़माने लौट चले
फिर छेड़ के दिल में टीसों के संगीत गई रुत बीत गई
मजीद अमजद
ग़ज़ल
वो डोल डालें किसी कार-ए-पाएदार का क्या
जो बे-सबाती-ए-उम्र-ए-रवाँ में रहते हैं