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ग़ज़ल
फ़रमाते हैं हँस हँस के मुझे देख के गिर्यां
ले डूबेगी आख़िर तुम्हें बरसात तुम्हारी
मुनीर शिकोहाबादी
ग़ज़ल
मुसलसल मुझ पे ये तेरी इनायत मार डालेगी
कभी फ़ुर्क़त कभी इस दर्जा क़ुर्बत मार डालेगी
सबीहुद्दीन शोऐबी
ग़ज़ल
अपनी नादानी ये नाज़ाँ हैं बहुत अहल-ए-ख़िरद
उन को ले डूबेगी उन की ख़ुद-परस्ती एक दिन
मुमताज़ अहमद ख़ाँ ख़ुशतर खांडवी
ग़ज़ल
वही ग़र्क़ाब होंगे हम वही कश्ती न डूबेगी
अगरचे नाख़ुदा इस सच को झुटलाने ही वाला है
ख़ालिद इबादी
ग़ज़ल
मैं हर इक राह-रौ से पूछता हूँ राह मंज़िल की
मुझे डर है कि ले डूबेगी मेरी सादगी मुझ को
डी. राज कँवल
ग़ज़ल
इस क़दर फ़य्याज़ होना भी तुम्हें अच्छा नहीं
तुम को ले डूबेगी ऐसी ख़ैर-ख़्वाही एक दिन
अहमद फ़ाख़िर
ग़ज़ल
अब ये तूफ़ान-ए-मुसीबत कम न होगा हश्र तक
नब्ज़ डूबेगी डुबा कर आप के बीमार को