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ग़ज़ल
लम्हों में ज़िंदगी का सफ़र यूँ गुज़र गया
साए में जैसे कोई मुसाफ़िर ठहर गया
ग़ौस ख़ाह मख़ाह हैदराबादी
ग़ज़ल
कैसा होगा देस पिया का कैसा पिया का गाँव रे
कैसी होगी धूप वहाँ की कैसी वहाँ की छाँव रे
ग़ौस सीवानी
ग़ज़ल
साहिर देहल्वी
ग़ज़ल
कोई सबब तो था कि 'ग़ौस' फ़हम-ओ-ज़का के बावजूद
कार-ए-सवाब छोड़ कर कार-ए-गुनाह में रहे
गाैस मथरावी
ग़ज़ल
होगा पुर-नूर सियह-ख़ाना हमारे दिल का
इस में तुम ग़ौस-ए-ख़ुदा को ज़रा आ जाने दो
जमीला ख़ुदा बख़्श
ग़ज़ल
सब के चेहरों की ख़राशें हैं नज़र में 'ग़ौसी'
आइनों से है दिल-ए-आइना-गर का रिश्ता
ग़ौस मोहम्मद ग़ौसी
ग़ज़ल
वा'दा क्या किसी बात के पाबंद नहीं हैं
बूढ़े हैं ना जज़्बात के पाबंद नहीं हैं
ग़ौस ख़ाह मख़ाह हैदराबादी
ग़ज़ल
अब क्या शिकायत-ए-रविश-ए-दोस्ताँ करूँ
'ग़ौसी' मिरी कमी भी तो मेरी नज़र में है