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ग़ज़ल
वो भी ग़ुबार-ए-ख़्वाब था हम भी ग़ुबार-ए-ख़्वाब थे
वो भी कहीं बिखर गया हम भी कहीं बिखर गए
अदीम हाशमी
ग़ज़ल
पस-ए-पर्दा भी लैला हाथ रख लेती है आँखों पर
ग़ुबार-ए-ना-तवान-ए-क़ैस जब महमिल से मिलता है
दाग़ देहलवी
ग़ज़ल
ख़ुदा जाने ग़ुबार-ए-राह है या क़ैस है लैला
कोई आग़ोश खोले पर्दा-ए-महमिल से मिलता है
जलील मानिकपूरी
ग़ज़ल
बे-रोए मिस्ल-ए-अब्र न निकला ग़ुबार-ए-दिल
कहते थे उन को बर्क़-ए-तबस्सुम हँसी से हम
मोमिन ख़ाँ मोमिन
ग़ज़ल
अपनी आँखें दफ़्न करना थीं ग़ुबार-ए-ख़ाक में
ये सितम भी हम पे ज़ेर-ए-आसमाँ होना ही था
मोहसिन नक़वी
ग़ज़ल
वही है साहिब-ए-इमरोज़ जिस ने अपनी हिम्मत से
ज़माने के समुंदर से निकाला गौहर-ए-फ़र्दा
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
फ़लक ऐ काश हम को ख़ाक ही रखता कि इस में हम
ग़ुबार-ए-राह होते या कसू की ख़ाक-ए-पा होते
मीर तक़ी मीर
ग़ज़ल
हम-सफ़ीरान-ए-जुनूँ यूँ हम से आगे बढ़ गए
क़ाफ़िला क्या है ग़ुबार-ए-क़ाफ़िला मिलता नहीं