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ग़ज़ल
शकील बदायूनी
ग़ज़ल
पत्ता पत्ता बूटा बूटा हाल हमारा जाने है
जाने न जाने गुल ही न जाने बाग़ तो सारा जाने है
मीर तक़ी मीर
ग़ज़ल
सुब्ह चमन में उस को कहीं तकलीफ़-ए-हवा ले आई थी
रुख़ से गुल को मोल लिया क़ामत से सर्व ग़ुलाम किया
मीर तक़ी मीर
ग़ज़ल
नासिर काज़मी
ग़ज़ल
वो गुल हूँ ख़िज़ाँ ने जिसे बर्बाद किया है
उलझूँ किसी दामन से मैं वो ख़ार नहीं हूँ
अकबर इलाहाबादी
ग़ज़ल
अरे सय्याद हमीं गुल हैं हमीं बुलबुल हैं
तू ने कुछ आह सुना भी नहीं देखा भी नहीं
फ़िराक़ गोरखपुरी
ग़ज़ल
कब महकेगी फ़स्ल-ए-गुल कब बहकेगा मय-ख़ाना
कब सुब्ह-ए-सुख़न होगी कब शाम-ए-नज़र होगी