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ग़ज़ल
ऐ शौक़ की बेबाकी वो क्या तेरी ख़्वाहिश थी
जिस पर उन्हें ग़ुस्सा है इंकार भी हैरत भी
हसरत मोहानी
ग़ज़ल
शब-ए-ख़ल्वत वही हुज्जत वही तकरार रही
वही क़िस्सा वही ग़ुस्सा वही इंकार रहा
हिज्र नाज़िम अली ख़ान
ग़ज़ल
शेर तो उन पर लिक्खे लेकिन औरों से मंसूब किए
उन को क्या क्या ग़ुस्सा आया नज़्मों के उनवानों पर
जाँ निसार अख़्तर
ग़ज़ल
इतने फ़िरऔ'नों को मारोगे तो क्या तुम बच जाओगे
मूसा-जी ये ग़ुस्सा छोड़ो और अपनी आसानी देखो
शुजा ख़ावर
ग़ज़ल
गर ज़िक्र-ए-वफ़ा से यही ग़ुस्सा है तो अब से
गो क़त्ल का वादा हो तक़ाज़ा न करेंगे
मोमिन ख़ाँ मोमिन
ग़ज़ल
कैसे कैसे मुझे बे-साख़्ता मिलते हैं ख़िताब
ग़ुस्सा आता है तो क्या क्या वो कहा करते हैं
अहमद हुसैन माइल
ग़ज़ल
बेकार ये ग़ुस्सा है क्यूँ उस की तरफ़ देखो
आईने की हस्ती क्या तुम अपनी तरफ़ देखो