aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "KHaak-nashii.n"
जिस जगह जम्अ तिरे ख़ाक-नशीं होते हैंग़ालिबन सब में नुमूदार हमीं होते हैं
सिलसिले नूर के मैं ख़ाक-नशीं जानता हूँकितने सूरज हैं यहाँ ज़ेर-ए-ज़मीं जानता हूँ
फ़क़ीर-ख़ाक-नशीं थे किसी को क्या देतेमगर यही कि वो मिलता तो हम दु'आ देते
जूँ ज़र्रा नहीं एक जगह ख़ाक-नशीं हमऐ महर-ए-जहाँ-ताब जहाँ तू है वहीं हम
शह-ए-दिलबराँ तुझे क्या ख़बर दिल-ए-रिंद-ए-ख़ाक-नशीं है क्याइसी ख़ाक ने उसे दिल किया यही ख़ाक उस को मिटा गई
हम बंदगान-ए-ख़ाक-नशीं ख़ाकसार हैंअपने लिए फ़ुज़ूल है सतवत ही क्यों न हो
आतिशीं रखती है याँ गर्मी-ए-रफ़्तार मुझेहूँ मह-ए-ख़ाक-नशीं गर्द है हाला मेरा
ताज-ए-ख़ुसरव से ग़रज़ उस को न तख़्त-ए-जम से'अफ़्क़र'-ए-ख़ाक-नशीं तेरा गदा है ऐ दोस्त
ख़ाकसारों से क़रीं रहता हैआसमाँ ख़ाक-नशीं रहता है
ख़ाक-नशीं होने की ख़ातिरसोचों में घर-बार बनाओ
जो कि हो ख़ाक-नशीं मुद्दत सेउस को शफ़्फ़ाफ़ बिछौना कैसा
ख़ाक हैं इस लिए हैं ख़ाक-नशींवर्ना हम आसमान वाले हैं
आज भी है 'मजाज़' ख़ाक-नशींऔर नज़र अर्श पर है क्या कहिए
तारे रवाँ हो जिस के क़दम चूमते हुए'मंसूर' ऐसा ख़ाक-नशीं चाहिए हमें
कहीं तो ख़ाक-नशीं कुछ बुलंद भी होंगेहज़ारों अपनी बुलंदी में कितने पस्त मिले
वो ख़ाक-नशीं 'ज़फ़र' है यारोजो सू-ए-फ़लक भी जा रहा है
फ़ज़ा यूँही तो नहीं मल्गजी हुई जातीकोई तो ख़ाक-नशीं होश खो रहा होगा
एक दुनिया हुई है ज़ेर-ए-नगींशह-नशीं हो गया है ख़ाक-नशीं
एक मज्ज़ूब है जो ख़ाक-नशींअर्श-ए-आ'ला से उस को निस्बत है
'जावेद' अपने फ़िक्र-ओ-नज़र आसमाँ से लाप्यारे ज़माना ख़ाक-नशीं का नहीं रहा
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