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ग़ज़ल
वो यूँ मिला कि ब-ज़ाहिर ख़फ़ा ख़फ़ा सा लगा
न जाने क्यूँ वो मुझे फिर भी बा-वफ़ा सा लगा
इक़बाल अज़ीम
ग़ज़ल
इक-दूजे से ख़फ़ा-ख़फ़ा से हैं अभी से हम
बेहतर ये है कि दूर हो जाएँ ख़ुशी से हम
सिद्धार्थ सैनी साद
ग़ज़ल
ये उस का तर्ज़-ए-तख़ातुब भी ख़ूब है 'मोहसिन'
रुका रुका सा तबस्सुम ख़फ़ा ख़फ़ा आँखें
मोहसिन भोपाली
ग़ज़ल
ये क्या हुआ कि डुबो कर मुझे बड़े दिन से
ख़फ़ा ख़फ़ा सी नदी है भँवर उदास उदास