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ग़ज़ल
जुनून-ए-शौक़ मिरी हसरतों से कम क्यों हो
वफ़ा की राह में ये लग़्ज़िश-ए-क़दम क्यों हो
मजीद खाम गानवी
ग़ज़ल
हम से मिल के फ़ितरत के पेच-ओ-ख़म को समझोगे
हम जहान-ए-फ़ितरत का इक सुराग़ हैं यारो
फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी
ग़ज़ल
जो तिरी महफ़िल से ज़ौक़-ए-ख़ाम ले कर आए हैं
अपने सर वो ख़ुद ही इक इल्ज़ाम ले कर आए हैं
सय्यदा शान-ए-मेराज
ग़ज़ल
ये सस्ती लज़्ज़तों सस्ती सियासत के पुजारी हैं
हमें अहबाब का सौदा-ए-ख़ाम अच्छा नहीं लगता
आल-ए-अहमद सुरूर
ग़ज़ल
है आज और ही कुछ ज़ुल्फ़-ए-ताबदार में ख़म
भटकने वाले को मंज़िल का रास्ता तो मिला
आल-ए-अहमद सुरूर
ग़ज़ल
हदफ़-ए-नाविक-ए-मिज़्गान-ओ-कमाँ अबरू था
न तड़पता शब-ए-फ़ुर्क़त दिल-ए-बिस्मिल क्यूँकर