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ग़ज़ल
मजीद अमजद
ग़ज़ल
अभी तो हंस रहे हैं कल ख़िज़ाँ में हश्र क्या होगा
हँसी आती है मुझ को ख़ंदा-ए-गुल-हा-ए-गुलशन पर
सफ़दर मिर्ज़ापुरी
ग़ज़ल
शगुफ़्ता आज कुछ दिल की कली मा'लूम होती है
बहार-ए-ख़ंदा-ए-गुल ज़िंदगी मा'लूम होती है
मोहम्मद नईमुल्लाह ख़्याली
ग़ज़ल
छुपा लेती है ख़ुश-पोशी भी क्या क्या ज़ख़्म दामन में
सदा-ए-ख़ंदा-ए-गुल एक फ़रियाद-ए-मुनज़्ज़म है
ख़्वाजा शौक़
ग़ज़ल
तबस्सुम से क्या ख़ंदा-ए-गुल को निस्बत
कहीं मुँह भी है मुस्कुराने के क़ाबिल