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ग़ज़ल
नियाज़-ओ-नाज़ के साग़र खनक जाएँ तो अच्छा है
तिरे मय-कश तिरे दर पर भटक जाएँ तो अच्छा है
ज़ेब बरैलवी
ग़ज़ल
किसे ख़बर जब मैं शहर-ए-जाँ से गुज़र रहा था
ज़मीं थी पहलू में सूरज इक कोस पर रहा था