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ग़ज़ल
ख़याल-ए-हुस्न-ए-बे-मिसाल दस्तरस में आ गया
ख़ुदी पे इख़्तियार मेरा पेश-ओ-पस में आ गया
जानी लखनवी
ग़ज़ल
हम और रस्म-ए-बंदगी आशुफ़्तगी उफ़्तादगी
एहसान है क्या क्या तिरा ऐ हुस्न-ए-बे-परवा तिरा
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
जिन्हें ख़बर ही नहीं शरह-ए-ज़िंदगी क्या है
वो मुजरिमों की तरह क़ैद अपने घर में हैं
रफ़ीक़ ख़याल
ग़ज़ल
हर कोई तर्क-ए-त'अल्लुक़ पर मुसिर है अब 'ख़याल'
आ मिरे दिल तू भी आ जा किस का धड़का रह गया