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ग़ज़ल
ख़ीरा-सरान-ए-शौक़ का कोई नहीं है जुम्बा-दार
शहर में इस गिरोह ने किस को ख़फ़ा नहीं किया
जौन एलिया
ग़ज़ल
ख़ीरा न कर सका मुझे जल्वा-ए-दानिश-ए-फ़रंग
सुर्मा है मेरी आँख का ख़ाक-ए-मदीना-ओ-नजफ़
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
क्या रोऊँ ख़ीरा-चश्मी-ए-बख़्त-ए-सियाह को
वाँ शग़्ल-ए-सुर्मा है अभी याँ सैल ढल गया
मोमिन ख़ाँ मोमिन
ग़ज़ल
तालिब की आँख करती है ख़ीरा शुआ-ए-हुस्न
पर्दा है उस का नाम ये बे-पर्दगी नहीं
मोहम्मद यूसुफ़ रासिख़
ग़ज़ल
होश पर बिजली गिरी आँखें भी ख़ीरा हो गईं
तुम तो क्या थे इक झलक सी थी तुम्हारी याद की
असग़र गोंडवी
ग़ज़ल
जो है 'फ़य्याज़' उस को देख कर मबहूत हैरत क्या
तड़पती है जो बिजली आँख ख़ीरा हो ही जाती है
फ़य्याज़ फ़ारुक़ी
ग़ज़ल
ये मुग़बचे तिरे साक़ी अभी हैं ख़ीरा बहुत
हर एक जाम-ए-तही और सला-ए-आम के बा'द
आनंद नारायण मुल्ला
ग़ज़ल
ख़ीरा हो जाती थी जिस से निगह-ए-सब्र-ओ-क़रार
उन के लब पर वो तबस्सुम न रहा मेरे बा'द
बासित भोपाली
ग़ज़ल
छीना है सुकूँ दहर का अरबाब-ए-ख़िरद ने
हैं अहल-ए-जुनूँ मोरिद-ए-इल्ज़ाम अभी तक
मुहम्मद अय्यूब ज़ौक़ी
ग़ज़ल
मिलते नहीं हो हम से ये क्या हुआ वतीरा
मिलने लगा है शायद अब तुम से कोई ख़ीरा
पंडित जवाहर नाथ साक़ी
ग़ज़ल
है नज़र ख़ीरा ये है ख़त्त-ए-सियह का जल्वा
दिन से बढ़ कर है फ़रोग़-ए-शब-ए-तार-ए-आरिज़
शाह अकबर दानापुरी
ग़ज़ल
ख़ीरा है बज़्म-ए-यार में 'नय्यर' निगाह-ए-शौक़
शमएँ जलीं कि दामन-ए-नज़्ज़ारा जल गया