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ग़ज़ल
ग़ुलाम हुसैन साजिद
ग़ज़ल
नहीं जाह-ओ-नसब से नामवर 'इक़बाल' या 'ग़ालिब'
‘अलम-बरदार-ए-शोहरत उन के रशहात-ए-क़लम निकले
aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
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नहीं जाह-ओ-नसब से नामवर 'इक़बाल' या 'ग़ालिब'
‘अलम-बरदार-ए-शोहरत उन के रशहात-ए-क़लम निकले