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ग़ज़ल
'ख़ुसरव' थे उस के हल्क़ा-बगोशों में आप भी
हाथों में डाले हाथ अभी कल की बात है
फ़िरोज़ नातिक़ ख़ुसरो
ग़ज़ल
'ख़ुसरव' सफ़ीर-ए-वक़्त से ग़म का मिज़ाज पूछ
माज़ी की अज़्मतों का ख़ुशी का पता न माँग
अमीर अहमद ख़ुसरव
ग़ज़ल
ख़लिश से जिस की थी वाबस्ता याद मंज़िल की
वो ख़ार पाँव से 'ख़ुसरव' निकल गया कैसे
अमीर अहमद ख़ुसरव
ग़ज़ल
जाने ये शौक़ की है कौन सी मंज़िल 'ख़ुसरव'
मैं कहीं रहता हूँ दिल मेरा कहीं रहता है
अमीर अहमद ख़ुसरव
ग़ज़ल
न बाँध रख़्त-ए-सफ़र पहले सोच ले 'ख़ुसरव'
शिकस्ता नाव अँधेरी है रात दरिया है
फ़िरोज़ नातिक़ ख़ुसरो
ग़ज़ल
'ख़ुसरव' इक आसेब के डर से घर का घर सब कील दिया
फिर भी इक आसेब है ज़िंदा जिस्म की इन दीवारों में
फ़िरोज़ नातिक़ ख़ुसरो
ग़ज़ल
अब्र-ए-रहमत को लिए अपनी नज़र में 'ख़ुसरव'
हम भी तो दश्त से गुज़रे कभी कोहसारों से
अमीर अहमद ख़ुसरव
ग़ज़ल
हूँ 'मुसहफ़ी' मैं ताजिर-ए-मुल्क-ए-सुख़न कि है
'ख़ुसरो' की तरह याँ भी अटाले की शायरी
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
ग़ज़ल
मैं अपने ही होने से गुरेज़ाँ हुआ 'ख़ुसरव'
इक़रार की सूरत कभी इंकार हुआ मैं