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ग़ज़ल
क्या हिना ख़ूँ-रेज़ निकली हाए पिस जाने के बाद
बन गई तलवार उन के हाथ में आने के बाद
जलील मानिकपूरी
ग़ज़ल
कर्ब मैं डूबे हुए ख़ूँ-रेज़ मंज़र रख दिए
किस ने मेरी ख़ुश्क आँखों में समुंदर रख दिए
शान-ए-हैदर बेबाक अमरोहवी
ग़ज़ल
तेग़-ए-ख़ूँ-रेज़-ब-कफ़ ख़ंजर-ए-बुर्रां ब-मियाँ
हर घड़ी सामने आ जाते हो खूँ-ख़्वार हुए
मीर मोहम्मदी बेदार
ग़ज़ल
अबतर-ए-ख़ूँ-रेज़ है क़त्ल उपर तेज़ है
ज़ालिम-ओ-सफ़्फ़ाक सूँ ख़ूब नहीं बोलना
उबैदुल्लाह ख़ाँ मुब्तला
ग़ज़ल
ये किस का ग़म्ज़ा-ए-ख़ूँ-रेज़ है कि महफ़िल में
किसी में दम नहीं सब की जसारतें चुप हैं
अज़हर ग़ौरी नदवी
ग़ज़ल
शहीदान-ए-मोहब्बत ज़िंदा-ए-जावेद होते हैं
वो अमृत है जो तेरा ग़म्ज़ा-ए-ख़ूँ-रेज़ है साक़ी
ज़ाइक़ बैंग्लोरी
ग़ज़ल
जिस ने खाया है तिरे अबरू-ए-ख़ूँ-रेज़ का ज़ख़्म
मुर्ग़-ए-बिस्मिल सा लहू बीच रला हाए रला
सिराज औरंगाबादी
ग़ज़ल
करम में भी मगर इक ग़म्ज़ा-ए-ख़ूँ-रेज़ शामिल था
निगाहों की तरफ़ उट्ठी तो दिल की नुक्ता-चीं बन कर