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ग़ज़ल
दिल-ए-नादाँ अभी ख़ूगर नहीं ये ग़म उठाने का
उठेगी तेरे दर से ये जबीं आहिस्ता आहिस्ता
रुख़्साना निकहत लारी उम्म-ए-हानी
ग़ज़ल
ख़ूगर-ए-सई-ए-मुकाफ़ात-ए-अमल बन के 'अतीक़'
फ़ाएदा तू भी हर आसानी-ओ-मुश्किल से उठा
अतीक़ अहमद अतीक़
ग़ज़ल
ये आँखें मुद्दतों से ख़ूगर-ए-बर्क़-ए-तजल्ली हैं
नशेमन बिजलियों का है मिरा काशाना बरसों से
इक़बाल सुहैल
ग़ज़ल
ये आँखें मुद्दतों से ख़ूगर-ए-बर्क़-ए-तजल्ली हैं
नशेमन बिजलियों का है मिरा काशाना बरसों से
इक़बाल सुहैल
ग़ज़ल
ख़ूगर-ए-क़ैद-ए-वफ़ा पर खुल चुका ज़िंदाँ का राज़
जुर्म थी वो क़ैद ये उस जुर्म की ताज़ीर है
मौलाना मोहम्मद अली जौहर
ग़ज़ल
रोज़ के ग़म ने इस तरह ख़ूगर-ए-ज़ब्त-ए-ग़म किया
दर्द हमारे दिल में है शिकवा ज़बान पर नहीं
नूह नारवी
ग़ज़ल
ये हालत है कि बेदारी भी है इक ख़्वाब का आलम
मआज़-अल्लाह अपना ख़ूगर-ए-ख़्वाब-ए-गिराँ होना
अलीम अख़्तर मुज़फ़्फ़र नगरी
ग़ज़ल
ख़ूगर-ए-रस्म-ए-सितम मैं हुआ 'दीवान' अब तो
अल-ग़रज़ अपने लिए अहल-ए-सितम अच्छे हैं