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ग़ज़ल
मता-ए-ख़ून-ए-जिगर अश्क को पिला बैठे
असासा हाथ में जितना था सब उठा बैठे
जितेन्द्र मोहन सिन्हा रहबर
ग़ज़ल
मुफ़्त है ख़ून-ए-जिगर अज़्मत-ए-किरदार के साथ
अश्क मिलते हैं यहाँ दीदा-ए-बेदार के साथ
मुग़ीसुद्दीन फ़रीदी
ग़ज़ल
ख़ून-ए-दिल होता रहा ख़ून-ए-जिगर होता रहा
ये तमाशा 'इश्क़ में शाम-ओ-सहर होता रहा
शिव रतन लाल बर्क़ पूंछवी
ग़ज़ल
मल ख़ून-ए-जिगर मेरा हाथों से हिना समझे
मैं और तो क्या कोसूँ पर तुम से ख़ुदा समझे
इंशा अल्लाह ख़ान इंशा
ग़ज़ल
देते हैं जिस को ख़ून-ए-जिगर कम बहुत ही कम
आते हैं उस शजर पे समर कम बहुत ही कम
मोहम्मद शरफ़ुद्दीन साहिल
ग़ज़ल
आँखों से रवाँ क्यों है मिरा ख़ून-ए-जिगर आज
शायद कि हुआ दिल हदफ़-ए-तीर-ए-नज़र आज