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ग़ज़ल
इन्हें दर-ए-ख़्वाब-गाह से किस लिए हटाया
मुहाफ़िज़ों की वफ़ा-शि'आरी में क्या कमी थी
ख़ालिद इक़बाल यासिर
ग़ज़ल
मुसलसल था फ़रेब-ए-ख़ाब-गाह-ए-आलम-ए-फ़ानी
मगर सोता रहा चलती रही उम्र-ए-रवाँ मेरी
सीमाब अकबराबादी
ग़ज़ल
बारयाब-ए-ख़्वाब-गाह-ए-नाज़ होने दो उसे
उन की ज़ुल्फ़ों में परेशाँ ख़ुद सबा हो जाएगी