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ग़ज़ल
बाद-ए-सरसर है नसीम-ए-गुलसिताँ मेरे लिए
बन गया कुंज-ए-क़फ़स अब आशियाँ मेरे लिए
हकीम मोहम्मद हुसैन अहक़र
ग़ज़ल
मैं ने इक गुल को मोहब्बत से सँभाले रक्खा
लोग डरते हैं कि अब भी मैं दग़ा देता हूँ
मुहम्मद हस्सान रज़ा
ग़ज़ल
न पूछो कैसे पाई है बहार-ए-गुल्सिताँ हम ने
बहुत मुश्किल दिए हैं इस की ख़ातिर इम्तिहाँ हम ने
मुहम्मद हस्सान रज़ा
ग़ज़ल
क़ैस के जैसा जुनूँ है कब किसी के यार में
अक्स-ए-लैला ढूँडते हैं फिर भी सब दिलदार में
मुहम्मद हस्सान रज़ा
ग़ज़ल
शबनम में फूल में कि चमन के निखार में
तुम किस में छुप के आओगे अब के बहार में
मुहम्मद हसन अहसन मालिगानवि
ग़ज़ल
दिलों में जल्वा-फ़गन याद-ए-रफ़्तगाँ है अभी
चराग़ बुझ गए सारे मगर धुआँ है अभी
मुहम्मद हसन अहसन मालिगानवि
ग़ज़ल
मेरे दिल में क्यों पहला सा दर्द नहीं आलाम नहीं
मिल तो गया है क़िस्मत से आराम मगर आराम नहीं
मुहम्मद हसन अहसन मालिगानवि
ग़ज़ल
इज़्तिराब-ए-ग़म से हासिल है सुकून-ए-दिल मुझे
अब कोई मुश्किल नज़र आती नहीं मुश्किल मुझे
मुहम्मद हसन अहसन मालिगानवि
ग़ज़ल
सोज़-ए-दरूँ से राज़-ए-मोहब्बत अयाँ न हो
दिल शम्अ' बन के जल उठे लेकिन धुआँ न हो
मुहम्मद हसन अहसन मालिगानवि
ग़ज़ल
रंग ग़ालिब न सही रंज-ए-मोहब्बत ही सही
ख़ुश नज़र आते हैं नक़्क़ाद नवा पर मेरी
मोहम्मद तन्वीरुज़्ज़मां
ग़ज़ल
वो जिस ने 'इश्क़-ओ-मोहब्बत का फ़र्क़ समझा नहीं
तो ऐसे लोग फ़क़त दिल-लगी के क़ाबिल हैं