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ग़ज़ल
यहाँ 'आहन' जो बैठा है कनार-ए-तुर्बत-ए-आबा
सो इस के ताब-ए-शौक़-ए-ग़म की ताबानी नहीं जाती
अख़लाक़ आहन
ग़ज़ल
कहे है 'आहन'-ए-दिल-गश्ता हर्फ़-ए-शीरीं जो
हुज़ूर-ए-ज़ेहन से समझेंगे कम-लिसानी में
अख़लाक़ अहमद आहन
ग़ज़ल
'आहन'-ए-रम्ज़-गुशा-ए-ग़म-ए-अफ़्कार-ओ-जुनूँ
हाए करते हुए कहता है वो हू-हू जानाँ
अख़लाक़ अहमद आहन
ग़ज़ल
'आहन'-ए-बे-चारा-ओ-बेकस का पूछो हाल क्या
शाह-ए-इस्तिग़्ना है लेकिन तेरे दर का वो फ़क़ीर
अख़लाक़ अहमद आहन
ग़ज़ल
क्या है ज़िक्र-ए-आतिश-ओ-आहन कि गद्दारान-ए-गूल
मारते हैं हाथ अंगारों पे घबराए हुए