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ग़ज़ल
हुई जिन से तवक़्क़ो' ख़स्तगी की दाद पाने की
वो हम से भी ज़ियादा ख़स्ता-ए-तेग़-ए-सितम निकले
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
नईम सिद्दीक़ी
ग़ज़ल
तेग़-ए-उर्यां पे तुम्हारी जो पड़ी मेरी आँख
चश्म-ए-जौहर से अजी ख़ूब लड़ी मेरी आँख